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एक झलक

रात इस वक़्त जोरो पर थी......

आसमान मे आज चाँद की रौशनी भी नहीं थी........

उस गहरे सन्नाटे को चिरती हुई वो धीमी सी आवाज़ जो एक पल के लिए भी थम नहीं रही थी......

वो.... वो आवाज़ कइयों साँप की थी......

उस खाली सुनसान सी सडक पर एक वीरान सा पड़ा घर.....

जो जायदा छोटा नहीं तो जायदा बड़ा भी नहीं था...... वहां उस घर के किनारे से खड़े दो बड़े ट्रक थे......

उस घर के दरवाज़े से दो लड़किया बाहर आती है........ उन लड़कियों मे से एक लड़की ने ब्राउन कलर का पेंट और ब्लैक शर्ट पहनी थी...... चेहरा मास्क और कैप से ढका था......... उसके अलावा उसके पैरों मे ना तो शूज थे ना स्लीपर...... वो युही नंगे पाँव कच्ची मिट्टी की सडक पर चल रही थी.... उसके हाथ मे हथेली मे हल्का कट लगा था..... तो हथेली पर कुछ बुँदे खून की झलक रही थी.... उसके साथ एक और लड़की थी..... जिसने ब्लू डेनिम जीन्स और ब्लैक कलर की हुडी पहनी थी.... उस हुडी की कैप से उसका सर ढका था और चेहरे पर ब्लैक मास्क.... उसने भी पैरो मे कुछ नहीं पहना..... और उसके कदमो की स्पीड जरा धीमे थी....... उन दोनों के पीछे ही कुछ लगभग 16 -17 साल की दस बारह लड़कियां भी उनके साथ चल रही........ वो सभी बिलकुल ख़ामोशी से आगे बढ़ रहे थे.... वो लोग उस घर से अभी जरा दुरी पर ही आये थे........ की उस ब्लैक हुडी वाली लड़की के कदम अचानक रुक जाते है......

उस लड़की को रुका देख दूसरी लड़की जिसका नाम मोरफी था वो भी रूक जाती है..... और पहली लड़की को देखती हुई पूछती है.....-" डार्लिंग..... क्या हुआ तू रुक क्यों गयी.......

तो वो लड़की (रितिका ) जिस से सवाल किया गया था वो सामने देखते हुए धीमी आवाज़ मे कहती है...-" शिविन.....

मोरफी रितिका की बात सुनकर कहती है....-" अब उस बन्दर ने क्या किया......

रितिका एक पल मोरफि को घूर कर देखती है और कहती है -" सामने देख.....

मोरफी रितिका की बात सुनकर मुड़ कर देखती है तो सामने शिविन खड़ा था...... अपनी कार के नज़दीक...... वो उन दोनों लड़कियों को ही देख रहा था जिनके चेहरे ढके थे.......

शिविन मोरफी और रितिका को देखता उनकी तरफ बढ़ने के लिए कदम बढ़ाता है.... की रितिका धीमी आवाज़ मे कहती है -" मोरु.... शिविन को मेरे बारे मे पता मत लगने देना.... जस्ट प्रेटेंड की तू मुझे नहीं जानती की मैं कौन हूं........ Ok..... बाय......

ये कहने के साथ ही रितिका अपने कदम पीछे लेकर वहां से दूसरी तरफ तेज कदमो से बढ़ जाती है.....

रितिका वहां से सीधा उस तरफ गयी थी जहा झाड़ियों के पीछे उसकी और मोरफी की बाइक खड़ी थी..... रितिका अपनी जीन्स की पॉकेट से चाबी निकाल कर अपनी बाइक स्टार्ट कर वहां से कुछ पलो मे ही रवाना हो जाती है....... बिना जूतों के बाइक चलाने मे जरा मुश्किल हो रही थी........ क्युकी वो रास्ता जरा खराब था.....

उस पर रितिका की पलकें बार बार झपक रही थी की उसकी आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा था....... वो खुद को होश मे रखने के लिए अपना सर जोर से झटकती है

उसके हाथों पर जैसे उसका काबू छूटने लगा था..... वो अपने ढीले पढ़ते हाथ को पूरी ताकत से एक बार फिर बाइक के हैंडल पर जमा लेती है..... और बाइक की स्पीड जरा तेज करती है...... की बेहोश होने से पहले उसका ठिक जगह पहुंचना जरुरी थी.....

अभी वो कुछ दूर ही पहुंची थी..... की उसे कुछ दुरी पर हेडलाइट की रौशनी चमकती नज़र आती है..... जो जाहिर ही किसी कार की थी ........ वो हॉर्न बजाती हुईं आगे बढ़ती है ....... पर जब कार के नज़दीक पहुंचते पर भी वो कार हॉर्न की आवाज़ के बाबजूद जरा नहीं हिलती तो रितिका को रुक जाना पड़ता है........

रितिका की आँखों को अब वैसे भी सब कुछ धुंधला नज़र आ रहा था........ उस पर कार की हेडलाइट्स......... रितिका को अब कुछ भी साफ नज़र आना बंद हो चूका था....... रितिका खुद को सँभालती हुई बाइक से उतरती है..... की तभी कार के डोर ओपन होते है.....

रितिका को नज़र नहीं आता की वो शख्श कौन है एक तो वहां अंधेरा हद से जायदा था.....उस पर हेड लाइट की तेज रौशनी मे उसकी हलकी खुलती आँखें अब खुलने तक से इंकार कर रही थी क्युकी हेडलाइट का पूरा फोकस उसके चेहरे पर था ........

रितिका अपनी आँखें के आगे अपना एक हाथ रखे हुए कहती है......-" एक्सक्यूज़ मी..... प्लीज.....आप ये हेडलाइट बंद कीजिये ...... और कार हटाइये रास्ते से...... बीच रास्ते मे कार कौन खड़ी करता है .........

पर इसके जवाब मे रितिका को केवल कदमो की आवाज़ सुनाई देती है..... खुद के नज़दीक बढ़ती हुई.......

और इसके साथ ही मानो रितिका सचेत हो जाती है और एक कदम पीछे लेती है..... पर अब उसके पैर भी लड़खड़ाने लगे थे....... पर इतनी आसानी से हार मान ने वालो मे से वो नहीं थी...... वो अपने हाथ को अपनी  बाइक पर करते हुए उसकी सीट पर रखे हेलमेट को दूसरे हाथ से पकड़ लेती है.... की एक हाथ उसका अभी भी अपनी आँखों के सामने था........

उसे हर पल के साथ वो कदमो की आहट अपने नज़दीक आती महसूस हो रही थी......... और जब उसे कदमो की आवाज़ अपने एक दम नज़दीक महसूस होती है.....तो वो एक दम से अपने हाथ को हरकत मे लाती हुई हेलमेट से उस शख्श पर वार करने उठlती है.... की सामने खड़ा शख्स रितिका के हेलमेट पकडे हुए हाथ की कलाई को थाम लेता है....... वो हेलमेट उस शख्श को छू भी नहीं पाता.....

रितिका अपनी कलाई पकडे जाने पर अपना हाथ घुमाते हुए कलाई को उस शख्स की मजबूत हथेली से आज़ाद करने की कोशिश करती है........पर उसके (रितिका के ) लिए अपना हाथ हिला पाना भी दुसबार हो रहा था ..........

रितिका अभी भी अपनी आँखें भींच कर अपने दूसरे हाथ से उस शख्स पर वार करने ही वाली थी की उसी वक़्त वो शख्श रितिका की उस कलाई को थामे हुए ही रितिका को अपने नज़दीक खींचता है..... और इस बीच रितिका के हाथ से हेलमेट छूट कर गिर जाता है..... रितिका का चेहरा उस शख्श के मजबूत चेस्ट से टकरा जाता है.......

रितिका सँभलती हुई उस शख्श से बचने की कोशिश मे अपने दूसरे हाथ से वार करने की कोशिश करती है......

पर उसके हाथों मे अब जैसे ताकत ही नहीं बची थी

एक पल मे वो ( रितिका )उस शख्स की बाहो मे थी..... वो बुरी तरह झटपटा रही थी....... पर उसके हाथों ने जैसे उसका साथ छोड़ दिया था......रितिका को ऐसा फील हो रहा था जैसे वो हाथ उसके शरीर का हिस्सा ही नहीं है .......

रितिका लगातार कोशिश कर रही थी........

वो शख्श रितिका को अपनी बाहो मे थामे अपनी कार के नज़दीक लेजाकर आराम से कार मे बैठा देता है......

रितिका की बॉडी लगातार मूव कर रही थी...... नजाने कितनी कोशिशो के बाद वो अपना हाथ कार के हैंडल तक लें जाती है......

की उसी वक़्त उसे कार का ड्राइविंग साइड का डोर बंद होने की आवाज़ आती है......

कार मे जरा भी रौशनी नहीं थी...... कार मे भी अंधेरा छाया था....... रितिका उस अँधेरे मे चाह कर भी उस शख्श का चेहरा नहीं देख पायी...... तभी वो शख्स कार के हैंडल पर रखा रितिका का हाथ पकड़ते हुए रितिका के नज़दीक झुकते हुए अपनी धीमी और गहरी आवाज़ मे कहता है -" शशशशश....... रिलैक्स........

इस एक पल के लिए उस आवाज़ को सुन रितिका बिलकुल शांत हो गयी.......वो उस आवाज़ को पहचान गयी थी......... पर आगे कुछ भी रियेक्ट करने से पहले उसकी आँखें और भी धुंधली होती चली गयी और वो बेहोश हो गयी..........

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